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दिल्ली की रहने वाली महिला ने कभी भूख से बेबस होकर शौचालय तो कभी देवालय में बिताया लॉकडाउन, एनजीओ की मदद से 70 दिनों पर पहुंची अपने घर

बीते 70 दिनों से काशी के कैंट रेलवे स्टेशन पर फंसी राजेश्वरी चड्ढा एक समाजसेवी संस्था रेड ब्रिगेट ट्रस्ट की मदद से गुरुवार सुबह अपने घर दिल्ली पहुंच गई। राजेश्वरी ट्रेन में पेपर सोप बेचती थी। राजेश्वरी ने दैनिक भास्कर प्लस ऐप से लॉकडाउन के बीच बिताए दिनों की कहानी साझा की। बताया कि, लॉकडाउन के पहले वह शिवगंगा ट्रेन से काशी पहुंची थी। अगले दिन जाना था कि ट्रेनें बंद हो गईं और फंस गई। शुरुआत के तीन दिनों तक भूखे प्यासे सुलभ शौचालय के बाहर सोना पड़ा था। बाद में प्रशासन ने मालगोदाम के पास शेल्टर होम में शिफ्ट कराया। लेकिन लॉकडाउन के चौथे फेज में शेल्टर होम को कम्युनिटी किचन बना दिया गया तो सात दिनों तक स्टेशन के बाहर शिव मंदिर में रात गुजारनीपड़ी।

संस्था ने की मदद, ट्रेन का टिकट कराकर घर भेजा

राजेश्वरी के बारें में जब रेड ब्रिग्रेड संस्था को पता चला तो संस्था संचालक अजय पटेल द्वारा लगातार मदद उसे पहुंचाई जाने लगी। वह संस्था के सदस्यों को स्टेशन पर लोगों की मदद के दौरान मिली थी। अजय पटेल ने3 जून कोशिवगंगा ट्रेन में रिजर्वेशनकरा दिया था। अजय पटेल ने बताया कि, राजेश्वरी को जाते समय कुछ पैसे दे रहा था, लेकिन उसने अपने स्वाभिमान को दिखाते हुए पैसेनहीं लिया। कहने लगी कि, दिल्ली में बस महिलाओं के लिए फ्री है। घर पहुंच जाऊंगी।अजय ने बताया कि, स्टेशन में कॉलोनी के लोगों ने राजेश्वरी को कपड़े, खाने भी दिए थे। जाते समय केला, फल, खाना दे दिया गया था।

मडुवाडीह रेलवे स्टेशन पर रेड ब्रिगेड संस्था के अजय पटेल (ब्लैक शर्ट में) के साथ राजेश्वरी।

जिंदगी को करीब से देखा, फिर से पेपर सोप का काम शुरू करूंगी

राजेश्वरी ने बताया कि उसकी मांकी 18 साल पहले मौत होचुकी है। पिता भी बचपन में ही गुजर गए थे। बड़े भाई और बहन ने पाला है। भाई सीलमपुर और बहन दिल्ली में घंटाघर के पासरहती है। कभी भाई तो कभी बहन के यहां रह लेती हूं। दिल्ली सरकार द्वारा 2500 रुपएखाते में आए हैं। फिर से पेपर सोप का ही काम शुरू करूंगी। आठवीं तक पढ़ाई की थी, लेकिन आगे छूट गई। काशी के लोगों ने खूब मदद किया। लेकिन 3 दिन टॉयलेट के बाहर सोयी। जिंदगी को करीब से देखा। गरीबी की लड़ाई ने सब कुछ सीखा दिया है।



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राजेश्वरी चड्ढा।


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