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कारसेवक सगे भाइयों के बलिदान पर गांववालों को गर्व, बोले- अब सपना हो रहा पूरा, बुंदेली भजनों से प्रभुराम को रिझाया

राम मंदिर निर्माण का सपना संजोए 28 साल पहले देश के कोने-कोने से कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। लेकिन तमाम आज तक अपने घर नहीं लौटे। परिजनों ने अब अपनों के लौटने की आस छोड़ दी है। लेकिन अब राम मंदिर के शिलान्यास की घड़ी आ गई है तो लोगों का कहना है कि उनके अपनों का बलिदान सफल हो गया। कुछ ही जज्बा महोबा जिले के पवा गांव में नजर आ रहा है। एक तरफ जहां अयोध्या में भूमि पूजन अनुष्ठान शुरू हो चुका है तो वहीं इस गांव में सोमवार को भगवान रामचंद्र की पूजा की गई। इसके बाद ग्रामीणों ने चौपाल लगाकर कारसेवकों का बलिदान याद किया और रामनाम का गुणगान कर भजन कीर्तन शुरु किया है।
पवा गांव में तीन कारसेवक अब तक नहीं लौटे
महोबा सदर तहसील के पवा गांव में रहने वाले दो सगे भाई रूप सिंह ओर लक्ष्मण सिंह के अलावा गांव के शिवदयाल अनुरागी साल 1992 में कारसेवा करने के लिए अयोध्या पहुंचे थे। लेकिन उसके बाद उनका कुछ पता नहीं चला। लेकिन परिजनों और ग्रामीणों में श्रीराम के प्रति आस्था और समर्पण का भाव आज भी जाग्रत है। अपनों को खोने के मलाल के बीच दो दिन बाद मंदिर निर्माण की खुशी ज्यादा है। लोगों का कहना है कि, प्रभुराम का वनवास खत्म हो गया। वे अब महल में विराजेंगे।
बेटे ने कहा- मेरे पिता और चाचा का सपना अब साकार हो रहा
कारसेवक रूप सिंह का बेटा खिलाड़ी सिंह अब 60 साल के हो चुके हैं। वे कहते हैं कि, पिता और चाचा अपने एक साथी के साथ अयोध्या गए थे। उनके अंदर राम नाम की भक्ति इस कदर थी कि वो सबकुछ छोड़ कर चले गए और आज तक लौट कर नहीं आए। लेकिन इस बात की ज्यादा खुशी है कि वे हमारे पिता थे। अब उनका सपना साकार हो रहा है। समूचे भारत के करोड़ों राम भक्त आस्था के सैलाब में डूबे हुए हैं। गांव से लेकर शहर तक राम नाम की धुन सुनाई दे रही है।
बुंदेली भजन गाकर प्रभु राम को रिझाया
भगवान श्रीराम की धुन में बच्चों से बुजुर्गों तक सभी लीन दिखाई दिए। यहां बुंदेली भजन छोटी से उमरिया, सौप दई भरोसे अपने राम के के सुर ताल ओर संगीत की धुन में सभी मंत्रमुग्ध होते नजर आए। श्रीराम के दरबार में बेसन के लड्डुओं को भोग अर्पित कर मंगल कामना की गई।


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यह तस्वीर महोबा की है। यहां पवा गांव में राम मंदिर के बनने की खुशी की है। इस गांव से दो सगे भाई और एक अन्य कारसेवा करने गए थे। लेकिन आज तक वे नहीं लौटे। गांव वालों का कहना है कि, उनके अपनों का बलिदान अब सफल हुआ।


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