प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का शिलान्यास करेंगे। लेकिन इससे पहले एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर लिखा कि बाबरी मस्जिद थी और रहेगी। इंशाअल्लाह। इसके साथ उन्होंने बाबरी मस्जिद और बाबरी मस्जिद विध्वंस की एक-एक तस्वीर भी साझा की है। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तुर्की के हागिया सोफिया का उदाहरण देते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद हमेशा एक मस्जिद रहेगी। हागिया सोफिया मस्जिद हमारे लिए एक बेहतरीन उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है, लेकिन न्याय को शर्मिंदा किया है। इस पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि जब कोर्ट ने फैसला सुना दिया तो झगड़ा कहां है। अब कोई झगड़ा नहीं बचा है।
ओवैसी का ट्वीट
दुखी हाेने की जरूरत नहीं
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह भी लिखा कि अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक और बहुसंख्यक तुष्टिकरण के आधार पर भूमि का पुनर्निर्धारण निर्णय इसे बदल नहीं सकता है। दुखी होने की जरूरत नहीं है। कोई स्थिति हमेशा के लिए नहीं रहती है।
##क्या बोले इकबाल अंसारी?
बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने कहा कि 9 नवंबर को कोर्ट से फैसला आ गया है। अब कोई झगड़ा बचा नहीं है और मैं ओवैसी बात ही नहीं करता। आपस में लड़ने से कभी चीन आंख दिखाता है तो कभी नेपाल तो कभी पाकिस्तान घूरता है। भगवान राम का सम्मान हैं। हमारे मजहब में सभी देवी-देवताओं का सम्मान है। चुनाव के दौरान लोग हिंदू-मुस्लिम बताते हैं। धर्म और जाति की राजनीति मुझे पसंद नहीं है। मुझे राम मंदिर भूमि पूजन में बुलावा मिला है, इसलिए जा रहा हूं। नायाब किताब रामचरितमानस की प्रति और गमछा भेंट करेंगे।
बीते साल 9 नवंबर को आया था फैसला
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर/बाबरी मस्जिद विवाद में अपना फैसला सुनाया था। कहा था कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है। विवादित जमीन को रामलला विराजमान को सौंपी गई थी। मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया था। इसके अलावा मस्जिद निर्माण के लिए यूपी सरकार को पांच एकड़ भूमि देने की बात कही थी। सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन अयोध्या में मिल चुकी है।
क्या है हागिया सोफिया?
हागिया सोफिया यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल है। यह तुर्की के इस्तांबुल में है। इसका निर्माण 1500 साल पहले हुआ था, जो दुनिया के सबसे बड़े चर्चों में एक रहा है। लेकिन 1453 में इसे मस्जिद में बदल दिया गया था। लेकिन 1934 में मुतस्फा कमाल पाशा के शासन में इसे म्यूजियम में बनाने का फैसला किया गया। इसके बाद कुछ लोग इसे मस्जिद में बदलने की मांग कर रहे थे। पिछले माह जुलाई में राष्ट्रपति एर्दोगन ने 1934 के उस फैसले को पलट दिया और म्यूजियम को मस्जिद में बदल दिया।
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