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ट्रेन में सीट पाने को पेंटर ने 72 घंटे बहाए पसीने, नहीं हुआ इंतजाम तो खरीदी सेकेंड हैंड कार; 14 घंटे में गांव पहुंचा

कोरोनावायरस महामारी के बीच डर व जागरूकता की एक कहानी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से आई है। यहां का एक युवक गाजियाबाद में पेंटिंग का काम करता था। लॉकडाउन के शुरुआती दिन जैसे-तैसे बीत गए, लेकिन बाद में परिवार के सामने खाने-पीने का संकट खड़ा होने लगा। गांव लौटने के लिए युवक ने पत्नी के साथ तीन दिनों तक बस व ट्रेनों में सीट पाने की जद्दोजहद की। लेकिन, हर बार भीड़ देख उसके पांव थम जाते थे। आखिरकार युवक ने अपनी बचत के 1.9 लाख रुपए की बैंक से निकाले और 1.5 लाख रुपए में सेकेंड हैंड कार खरीद ली। इसके बाद परिवार के साथ गाजियाबाद-टू-गोरखपुर अपने गांव आ गया। अब उसने दोबारा कभी वापस न लौटने की कसम खाई।

शुरुआत में लगा कि जल्द सामान्य हो जाएगा सबकुछ
पीपीगंज थाना क्षेत्र के कैथोलिया गांव निवासी लल्लन गाजियाबाद में पेंट-पॉलिश का काम करता है। उसके साथ पत्नी भी रहती है। लल्लन ने बताया- 25 मार्च को जब लॉकडाउन का ऐलान किया गया तो लगा कि, जल्द ही सब कुछ सामान्य हो जाएगा। लेकिन, जब लॉकडाउन बढ़ता रहा तो मैंने व मेरे परिवार ने गांव वापसी करने का निर्णय लिया। हमनें बस व ट्रेनों में सीट पाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन असफल रहे। बसों में इतनी भीड़ रहती थी कि डर लगने लगा। सोचा कि, इस तरह सोशल डिस्टेंसिंग के बगैर यात्रा की तो कोरोनावायरस से संक्रमित हो सकते हैं।

मैंने अपनी सारी बचत खर्च कर दी

अंत में, जब मैं श्रमिक ट्रेनों में भी सीट पाने में विफल रहा तो मैंने एक कार खरीदने और उसी से गांव पहुंचने का निर्णय लिया। मुझे पता है कि मैंने अपनी सारी बचत खर्च कर दी है, लेकिन कम से कम मेरा परिवार सुरक्षित है।

गोरखपुर में काम मिलने की उम्मीद

लल्लन 29 मई को अपने परिवार के साथ कार में गाजियाबाद से रवाना हुआ और अगले दिन 14 घंटे की यात्रा के बाद गोरखपुर पहुंचा है। वह क्वारैंटाइन है। उसे अब गोरखपुर में काम मिलने की उम्मीद है। लल्लन ने कहा- अगर मुझे यहां काम मिल जाता है, तो मैं गाजियाबाद नहीं लौटूंगा।



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ये तस्वीर लल्लन (नीले शर्ट में) की है। वह परिवार के साथ कार से गोरखपुर पहुंचा। लल्लन को कार चलानी नहीं आती थी, इसलिए वह अपने साथ ड्राइवर भी लाया था।


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