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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की जमानत अर्जी खारिज, अदालत ने कहा- अभी विवेचना चल रही है, ऐसे में जमानत देने का औचित्य नहीं

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की एमपीएमएल की विशेष अदालत ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की जमानत अर्जी खारिज कर दी। अपने आदेश मेंविशेष न्यायाधीशपी0 के0 राय ने कहा कि मामला गंभीर प्रकृति का है। केस की विवेचना अभी चल रही है ऐसे में इस स्तर जमानत देने का केाई औचित्य नहीं है।

अदालत ने यह आदेश जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी मनेाज त्रिपाठी की ओर से पेश तर्को को स्वीकार करते हुए पारित किया। त्रिपाठी का तर्क था कि लल्लू के खिलाफ अब तक की विवेचना में पर्याप्त साक्ष्य पाये गये हैं। तर्क दिया गया कि लल्लू ने स्वयं गृह सचिव को पत्र लिखकर बसों की सूची उपलब्ध कराने की बात कही थी अतः प्रकरण में उनका सीधा सीधा संबध है। यह भी तर्क दिया गया कि लल्लू के खिलाफ 18 मुकदमों का अपराधिक इतिहास है जिसमें से चार मुकदमें गुण्डा एक्ट के हैं। ये मुकदमें पिछली सरकारेां के दौरान लल्लू के खिलाफ दर्ज हुए थे।

अभियेाजन की ओर से कोर्ट को बताया गया कि लल्लू ने अपने सहअभियुक्तों के साथ मिलकर सुनियोजित तरीके से एक हजार बसों कूटरचित सूची भेजकर सरकारी कार्य में बाधा डाली। लल्लू ने लोकसेवकों कोमिथ्या सूचना देते हुए कोरोना महामारी जैसी विभिषिका के समय सरकार की ख्याति धूमिल करने तथा उक्त बसों में प्रवासी श्रमिकेां केा भेजकर उनके जीवन को खतरे में डालने का अपराध किया है।

वहीं लल्लू की ओर से जमानत अर्जी पेश कर उनके वकील सत्येंद्र सिंह ने दलील दी थी कि लल्लू का मामले में कोई अहम रेाल नहीं है और सरकार ने उन्हें राजनीतिक कारणेां से फंसाया है। दोंनेां पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने प्रकरण की गंभीरता और लल्लू के खिलाफ अब तक की विवेचना में एकत्रित सबूतों को देखते हुए उनकी जमानत खारिज कर दी।
यह है मामला
लल्लू बस विवाद मामले में जेल में हैं। उन्हें 20 मई को आगरा में अवैध रूप से धरना प्रदर्शन करने के आरेाप में गिरफतार कर लिया गया था किन्तु उन्हें उसी दिन जमानत मिल गयी। हांलाकि उसके तुरंत बाद लखनऊ पुलिस ने उन्हें दूसरे केस में पकड़ लिया था। उनके ऊपर आरेाप है कि बसों के कागजों में फर्जीवाड़ा किया गया।



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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की जमानत याचिका अदालत ने यह कहकर खारिज कर दिया कि मामला अभी गंभीर है इसमें विवेचना चल रही है। एैसे में जमानत देने का कोई औचित्य नहीं है।


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