उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री कमल रानी वरुण की रविवार सुबह कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई। वे 58 साल की थीं। उनका 15 दिनों से लखनऊ के एसजीपीआई में इलाज चल रहा था। वे कानपुर में घाटमपुर विधानसभा से विधायक थीं। यह यूपी की एक ऐसी सीट थी, जिस पर राम मंदिर आंदोलन में भी भाजपा को जीत हासिल नहीं हुई थी। लेकिन 2017 में कमल रानी वरुण ने वह कर दिखाया, जिसकी आशा भाजपा ने छोड़ थी। उन्होंने अपनी जमीनी लोकप्रियता के सहारे सपा, बसपा और कांग्रेस के दबदबे को कमजोर करते हुए यहां कमल खिलाया। यही वजह थी कि, उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया और प्रावधिक शिक्षा मंत्री बनाया गया था।
पहली बार पार्षद के चुनाव में अजमाया था भाग्य
कमल रानी वरुण ने साल 1989 में पहली बार चुनाव में अपनी किस्मत अजमाई थी। भाजपा ने उन्हें कानपुर के द्वारिकापुरी वार्ड से कानपुर पार्षद का टिकट दिया था। चुनाव जीत कर नगर निगम पहुंची कमलरानी 1995 में दोबारा उसी वार्ड से पार्षद निर्वाचित हुईं थी। भाजपा ने 1996 में उन्हें उस घाटमपुर (सुरक्षित) संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। अप्रत्याशित जीत हासिल कर लोकसभा पहुंची कमलरानी ने 1998 में भी उसी सीट से दोबारा जीत दर्ज की थी।
लगातार दो चुनावों में मिली हार
साल1999 के लोकसभा चुनाव में कमल रानी को भाजपा ने फिर टिकट दिया। लेकिन महज 585 मतों के अंतराल से बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल संखवार के हाथों पराजित होना पड़ा था। वर्ष 2012 में पार्टी ने उन्हें रसूलाबाद (कानपुर देहात) से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वह जीत नहीं सकी थी। 2015 में पति की मृत्यु के बाद 2017 में भाजपा ने उन्हें घाटमपुर सीट से मैदान पर उतारा। यहां भाजपा के सामने अपनी पैठ बनाना काफी मुश्किल था। लेकिन जब चुनाव के परिणाम आए तो वे घाटमपुर सीट से भाजपा की पहली विधायक चुनी जा चुकी थीं। पार्टी की निष्ठावान और अच्छे बुरे वक्त में साथ रहीं कमलरानी को योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।
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